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त्रिदोष सिद्धांत (Tridosha theory) क्या है? वात, पित्‍त और कफ का असंतुलित होना, इनसे होने वाले रोग और इनका आयुर्वेदिक औषधियों से उपचार:

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आज हम इस ब्लॉग पोस्ट में आपको त्रिदोष सिद्धांत क्या है? वात, पित्‍त और कफ का असंतुलित होना, इनसे होने वाले रोग और इनका आयुर्वेदिक औषधियों से उपचार (What is Tridosha theory) के बारे में बात करेंगे इस सिद्धांत का आयुर्वेद में बहुत बड़ा योगदान है। 

आयुर्वेद में वात, पित्‍त और कफ इन तीनों को दोष कहा गया हैं। याद रहे कि यहां प्रयुक्त होने वाला शब्द “दोष” का अर्थ ‘विकार’ disorders नहीं है। इन तत्वों के आयुर्वेद में इनके लिए कहा गया है कि “”दुषणात दोषाः धारणात धातवः””, इसका मतलब यह हुआ कि जब हमारे शरीर के वात, पित्त व कफ असंतुलित अवस्था में चले जाते है, तो हमारे शरीर में बीमारियां पैदा हो जाती है। जब यह तत्व अपनी संतुलित अवस्था को प्राप्त करते है तो सप्त धातु को धारण करते है और हमारे शरीर को निरोगी रखते है।

           हमारा मानव शरीर पांच तत्वों जल (water), पृथ्वी (Earth), आकाश (Sky) अग्नि (Fire) और वायु(Air) से मिलकर बना है। आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर का स्वास्थ्य त्रिदोष सिद्धांत- वात पित्त और कफ पर सबसे ज्यादा निर्भर रहता है। यदि हमारे शरीर का त्रिदोष सिद्धांत- (वात पित्त और कफ) संतुलित अवस्था में हैं तो हम पूरी तरह स्वस्थ हैं। अगर यदि  इन तीनों दोषों में से किसी का भी संतुलन बिगड़ गया तो समझ लीजिए कि शरीर में रोग उत्पन्न होने प्रारंभ हो जाते है। इसलिए वात पित्त और कफ को  “दोष” के नाम पुकारा गया है और इस सिद्धांत को   ‘त्रिदोष सिद्धांत’ Tridosha theory कहा गया है। 

          इन्हीं पंच तत्व जल (water), पृथ्वी (Earth), आकाश (Sky) अग्नि (Fire) और वायु (Air) में से वात पित्त  और कफ 2 तत्व विद्यमान होते हैं। उन्ही पंच तत्वों के स्वभाव के आधार पर वात, पित्त और कफ के लक्षण निर्धारित होते हैं। वात दोष- ‘आकाश (sky)’ और ‘वायु (air)’ इन्ही दो तत्वों से मिलकर बना है। इन दोनों तत्वों  ‘आकाश (sky)’ और ‘वायु (air)’  के स्वभाव में ही गतिशीलता विद्यमान होती है।  तो वात दोष के लक्षण भी गतिशीलता से जुड़े होते हैं। त्रिदोष सिद्धांत के असंतुलित होने के दो मुख्य कारण होते है। प्रथम कारण इन दोषों में वृद्धि होना और दूसरा कारण इनमे कमी होना है। किसी व्यक्ति के शरीर में दोष वृद्धि होने पर व्यक्ति के शरीर में बीमारियां जन्म लेती है। अगर यदि व्यक्ति के दोष वृद्धि में कमी आती है तो इस अवस्था में व्यक्ति बीमार होने की संभावना कम होती है। इसके पीछे का कारण दोष अपने आप में बीमारी या या इसमें कमी है। 

त्रिदोष सिद्धांत वात, पित्त और कफ कब असंतुलित कब होता है:

आयुर्वेद में वात, पित्त, और कफ, ये तीनों दोष हमारे शरीर में विभिन्न कार्यों को संतुलित रखने में मदद करते हैं। इन दोषों के संतुलन के कारण हमारे शरीर में एक स्वस्थ और संतुलित रोगों से लड़ने की क्षमता बनी रहती है। हमारे शरीर में वात, पित्त, और कफ दोष का संतुलन बिगड़ जाने पर हमारे शरीर में रोगों का प्रकोप हो सकता है।

1. वात (Vata) दोष: वात दोष वायु और अकाश तत्व से बना होता है और यह सर्वांगीण रूप से शरीर में प्रवृद्धि करता है। वात दोष के संतुलन में होने से शरीर में विभिन्न समस्याएं हो सकती हैं। वात दोष के प्रभाव से शरीर में स्थायीत्व की कमी हो सकती है, जिससे आंत, विशेष रूप से पेट, और अन्य अंग अवयवों में विकार हो सकता है। वात दोष के प्रभाव से व्यक्ति तनावग्रस्त और चिंताग्रस्त हो जाता है, नींद नहीं आती है, शरीर दर्द करता है, शीत और शुष्कता की समस्याएं हो सकती हैं, त्वचा सूख सकती है, आंखों में खराबी हो सकती है और अन्य तरह के शारीरिक और मानसिक विकार हो सकते हैं।

2. पित्त (Pitta) दोष: पित्त दोष अग्नि और जल तत्व से बना होता है और शरीर में तेजस्वी, उष्ण, और सामंजस्य के प्रतीक होता है। पित्त दोष के संतुलन में बिगड़ने से शरीर में अम्लता, विशेष रूप से पेट, अमाशय, और रक्तवाहिनियों में विकार हो सकता है। पित्त दोष के प्रभाव से व्यक्ति अतिरिक्त तेजस्वी हो जाता है, उत्तेजक और क्रियाशील होता है, अत्यधिक पसीना आता है, जीभ की लालिमा हो सकती है, त्वचा पर फुंसियां हो सकती हैं और अन्य तरह के शारीरिक और मानसिक विकार हो सकते हैं।

3. कफ (Kapha) दोष: कफ दोष पृथ्वी और जल तत्व से बना होता है और यह शरीर में स्थिरता, स्तिमित, और शिथिलता के प्रतीक होता है। कफ दोष के संतुलन में होने से शरीर में तरलता, विशेष रूप से नाक, श्वास नली, और स्तनों में विकार हो सकता है। कफ दोष के प्रभाव से व्यक्ति स्थिर, शांत, और धैर्यवान हो जाता है, वजन बढ़ सकता है, पेट में घनता हो सकती है, त्वचा और बाल तरल हो सकते हैं, सांस लेने में परेशानी हो सकती है, गले में खराश हो सकती है और अन्य तरह के शारीरिक और मानसिक विकार हो सकते हैं।

वात, पित्त, और कफ दोष के संतुलन के लिए आयुर्वेद में विभिन्न उपचार विधियां उपलब्ध हैं। ये उपचार आयुर्वेदिक दवाइयों, आहार, विहार, और प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से किए जाते हैं। ये उपचार हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं और हमें रोगों से बचाने के लिए सामर्थ्य प्रदान करते हैं। हमें वात, पित्त, और कफ के संतुलन के लिए संतुलित आहार और विहार का पालन करना चाहिए और विभिन्न योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। इससे हमारे शरीर में त्रिदोषों का संतुलन बना रहता है और हम स्वस्थ रहते हैं।

वात, पित्त और कफ को संतुलित करने के लिए आयुर्वेदिक औषधि उपचार:

वात, पित्त, और कफ को संतुलित करने के लिए आयुर्वेद में कई प्राकृतिक औषधियां हैं मौजूद है जो हमारे विभिन्न प्रकार के विकारों को ठीक करने में मदद कर सकती हैं। यहां मैं आपको कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियों के साथ उनके उपयोग विधि और उपचार का विवरण देने का प्रयास करेंगे:

• अश्वगंधा (Ashwagandha): अश्वगंधा का सेवन वात विकारों को ठीक करने में सहायक होता है। इसके सेवन से व्यक्ति का तनाव, और थकान को कम करने में मदद मिलती है। इसका प्रयोग हम पाउडर या काढ़ा आदि के रूप कर सकते है।

• शतावरी (Shatavari): शतावरी पित्त विकारों ठीक करती है। यह महिलाओं के गर्भाशय संबंधी समस्याओं के उपचार में कारगर है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं।

• ब्राह्मी (Brahmi): ब्राह्मी मेमोरी और कांसेन्ट्रेशन को बढ़ाने में मदद करती है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं।

• वचा (Vacha): वचा मस्तिष्क की कार्यशीलता को बढ़ाने में सहायक है। इसे पाउडर आदि के रूप में ले सकते हैं।

• जटामांसी (Jatamansi): जटामांसी तनाव को कम करने में मदद करती है और नींद लाने में सहायक होती है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

• आमला (Amla): आमला वात विकारों को कम करने में मदद करता है और शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसे पाउडर या मुरब्बा के रूप में ले सकते हैं।

• गुडूची (Guduchi): गुडूची पित्त विकारों को कम करने में मदद करता है और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसका इस्तेमाल हम पाउडर या कढ़ा के रूप में कर सकते हैं।

• पित्तपापड़ी (Pittapapada): पित्तपापड़ी पित्त विकारों के लिए उपयुक्त है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं।

• कुटकी (Kutki): कुटकी पित्त विकारों को ठीक करने में सहायक है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं।

• नीम (Neem): नीम रक्त शुद्धि के लिए उपयुक्त है और पित्त विकारों को कम करने में मदद करता है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं।

• हरीतकी (Haritaki): हरीतकी वात विकारों को कम करने और पाचन शक्ति को सुधारने में सहायक है। इसका उपयोग हम पाउडर या कढ़ा के रूप में कर सकते हैं।

• बिभीतकी (Bibhitaki): बिभीतकी कफ विकारों को कम करने और शरीर की रक्त शुद्धि करने में मदद करता है। इसे पाउडर या कढ़ा आदि के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

• अमलकी (Amalaki): अमलकी बलवान्त रक्त को बढ़ाने और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं।

• गुग्गुल (Guggul): गुग्गुल वात और कफ विकारों को कम करने में मदद करता है और रक्त को शुद्ध करता है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं।

• दारुहरिद्रा (Daruharidra): दारुहरिद्रा पित्त विकारों को कम करने में मदद करता है और शरीर की रक्त शुद्धि को सुधारता है। इसे पाउडर या काढ़े के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

यहां दी गई आयुर्वेदिक औषधियां वात, पित्त, और कफ को संतुलित करने में मदद करती हैं और शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक हो सकती हैं। ध्यान रहे कि यह उपाय अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक या डॉक्टर की सलाह के अनुसार उपयोग किए जाने चाहिए।

एसपी सिंह चंद्रमा

एसपी सिंह चंद्रमा

अधिकतर मेरे लेख अपने आरोग्य को सुधारने, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के अद्भुत फायदों पर आधारित होते हैं। मेरा उद्देश्य सामान्य लोगों को स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है और उन्हें शक्तिशाली आयुर्वेदिक उपचार और उपायों से अवगत कराना है। मेरे लेखों में आपको विशेषज्ञ सलाह और नैतिकता के साथ विश्वसनीय जानकारी मिलेगी जो आपके रोगों को दूर करने में मदद करेगी और आपको स्वस्थ और प्रकृति से समृद्ध जीवन जीने में सहायता करेगी। धन्यवाद।

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