आज हम इस ब्लॉग पोस्ट में आपको पीलिया (Jaundice) क्या है, इसके कारण, लक्षण और इसका आयुर्वेदिक उपचार, बचाव एव सावधानियां के बारे में लाभदायक जानकारी देने का प्रयास करेंगे। तो चलिए जानते है कि पीलिया (Jaundice) क्या है?:
पीलिया (Jaundice) एक गंभीर बीमारी है। पीलिया के कारण व्यक्ति की त्वचा (skin), आंख (eye) या नाखून आदि पीले (Yellow) रंग के दिखाई देने लगते है। यह पीला रंग आपके म्यूकस झिल्ली (mucus membrane) में स्पष्ट दिखाई देने लगता है। पीलिया की बीमारी शरीर में बिलीरुबिन (bilirubin) की मात्रा बढ़ जाने के कारण होती है। बिलीरुबिन (bilirubin) की उत्पत्ति हमारे शरीर के उत्तकों और खून में होती है। जब किसी कारणों से लाल रक्त कोशिकाएं (red blood cell) टूट जाने के कारण पीले रंग (yellow color) के बिलीरुबिन (bilirubin) का निर्माण होता है। हमारे शरीर में बिलीरुबिन (bilirubin) का नॉर्मल स्तर लगभग 0.2 – 1.2 एमजीMG/डीएलDL के मध्य होता है। बिलीरुबिन के कारण पीलिया की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की त्वचा (skin) और शरीर के अन्य अंग जैसे आंख का सफेद हिस्सा पीलिया की बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। जिस कारण से पीलिया ग्रस्त व्यक्ति के अंग पीले दिखाई पड़ते है। बिलीरुबिन (bilirubin) वर्णक (pigment) पीले या नारंगी रंग का भी हो सकता है। बिलीरुबिन हमारे लिवर से फिल्टर होकर शरीर से बाहर निकलता रहता है। जब किसी कारणों से यह बिलीरुबिन (खून) लिवर में नहीं जा पाता या हमारे लिवर द्वारा फिल्टर नहीं होता है तो शरीर में बिलीरुबिन (खून) की मात्रा बढ़ जाती है। जिस कारण से पीलिया की बीमारी उत्पन्न होती है। पीलिया की बीमारी में टोटल सीरम बिलीरुबिन का स्तर 3 ML/DL (मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर) से अधिक हो जाता है।
अधिकतर मामलों में पीलिया की बीमारी नवजात शिशुओं में देखने को मिलती है, लेकिन कुछ मामलों में यह वयस्कों में भी हो सकती है। पीलिया की बीमारी के लक्षणों के आधार पर चिकित्सक/डॉक्टर पीलिया रोग के प्रकार की पुष्टि कर उपचार प्रक्रिया प्रारंभ करते है। पीलिया मुख्यतः तीन प्रकार का होता है। वायरल हैपेटाइटिस (viral hepatitis) ए, वायरल हैपेटाइटिस (viral hepatitis) बी तथा वायरल हैपेटाइटिस (viral hepatitis) नान ए व नान बी। यदि पीलिया का समय पर उपचार नहीं कराने पर सेप्सिस (sepsis) जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। कुछ अन्य मामलों में रोगी के लिवर फेल (liver failure) जैसी घटनाएं भी देखी गई है। इस लिए समय रहते हुए पीलिया (Jaundice) का उचित इलाज कराना जरूरी होता है।
पीलिया, जिसे जौंडिस भी कहा जाता है, एक प्रकार की बीमारी है जिसमें आपके शरीर के प्रमुख अंगों की पीलापन दिखाई देता है, क्योंकि आपके जिगर (लिवर) के कुछ गलबल्ला (होलोग्राम) बंद हो जाते हैं जिनसे बिलीरुबिन का तत्व नहीं निकल पाता है। पीलिया के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:
पीलिया (Jaundice) के क्या कारण है?:
पीलिया (Jaundice) रोग मुख्यत: वायरल इंफेक्शन, लिवर से संबंधित समस्या, हार्मोनल बदलाव आदि के के कारण होता है। इनके अन्य कारण निम्नवत: है:
• वायरल इन्फेक्शन: पीलिया रोग वायरस के कारण भी हो सकता है।
• लिवर संबंधित समस्याएं: लिवर से संबंधित रोग के कारण या संक्रमण कारण भी पीलिया रोग हो सकता है, जैसे कि हेपेटाइटिस बी और सी।
• आलस्य और अव्यवस्थित आहार: पीलिया होने के पीछे हमारा आलस्य और अव्यवस्थित आहार जैसे कि अल्कोहलिक पेय पदार्थ, अव्यवस्थित खानपान पीलिया की बीमारी की मुख्य वजह बन सकती है।
• जौंडिस संबंधित रोग: जौंडिस से संबंधित रोग जैसे थैलेसीमिया जैसी जेनेटिक बीमारी और अन्य समस्याएं भी पीलिया रोग का कारण बन सकती हैं।
• लीवर का संक्रमण: लीवर का संक्रमण जैसे मलेरिया, टायफाइड, और अन्य संक्रमण पीलिया रोग के कारण बन सकते हैं।
• रासायनिक दवाओं का सेवन: कुछ रासायनिक एंटीबायोटिक्स दवाओं के कारण भी पीलिया रोग हो सकता है।
• हॉर्मोनल परिवर्तन: हॉर्मोनल परिवर्तन जैसे कि गर्भावस्था के दौरान हार्मोन बदलाव या गर्भाशय में किसी कारणवश हुए संक्रमण के कारण भी पीलिया हो सकता है।
• नवजात शिशु में जन्म के दौरान: कुछ नवजात शिशुओं में पीलिया रोग देखा जाता है। इसके लिए शिशु के माता पिता को न्यूनतम सुरक्षा और देखभाल की आवश्यकता होती है।
• किडनी स्टोन्स: यदि व्यक्ति को लंबे समय तक किडनी स्टोन्स या गुर्दे की समस्याएं हैं, तो इससे भी पीलिया हो सकता है।
• विटामिन डी की कमी: विटामिन डी की कमी के कारण भी पीलिया हो सकता है। इसके लिए व्यक्ति को प्रातःकालीन सूर्योदय के संपर्क में रहना जरूरी है।
• लिवर का बढ़ना: यदि किसी व्यक्ति का लिवर किसी कारण से बढ़ा हो जाता है, तो उस व्यक्ति को पीलिया की बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।
• गर्मियों में अधिक पसीना आना: गर्मियों का मौसम में यदि किसी व्यक्ति को लगातार अधिक पसीना आता रहता है तो इस कारण से भी पीलिया हो सकता है।
• अधिक मात्रा मे तम्बाकू और धूम्रपान करना: अधिक मात्रा मे तम्बाकू और धूम्रपान करने से हमारे जिगर की कार्यक्षमता में कमी आती है। इस कारण से पीलिया हो सकता है।
पीलिया (Jaundice) के लक्षण क्या है?:
आपने ऊपर पीलिया (Jaundice) रोग के कारणों के संबध मे जानकारी है, अब हम आपको पीलिया रोग के लक्षणों के संबध मे जानकारी देने का प्रयास करेंगे। पीलिया रोग के लक्षण निम्नवत: है:
पीलिया (जौंडिस) एक रोग है जिसमें आपके त्वचा और आंखों का सफेद हिस्सा पीले रंग में बदल जाता है, क्योंकि यह बिलीरुबिन नामक तत्व हमारे शरीर में अतिरिक्त मात्रा में बढ़ जाता है। इसी कारण के पीलिया के प्रारंभिक चरणों में बीमारी को पहचानकर समय रहते उचित उपचार करवाया जा सकता है:
• त्वचा और आंखों का पीलापन: यह सबसे सामान्य लक्षण है, जिसमें त्वचा और आंखों का सफेद हिस्सा पीला दिखाई देता है।
• जलन और खुजली होना: त्वचा में जलन और खुजली की समस्या हो सकती है, खासकर जहां पर आंखों का सफेद हिस्सा पीला होता है।
• पेट दर्द और असहजता: पीलिया में पेट में दर्द और असहजता की समस्या हो सकती है।
• मूत्र में पीलापन: इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के मूत्र में पीलापन हो सकता है।
• पेट की सूजन: पीलिया में पेट की सूजन की समस्या हो सकती है।
• पाचन में कमी: पीलिया से आपके पाचन क्रियाओं में कमी हो सकती है और आपका खानपान परेशानी पैदा कर सकता है।
• थकान और कमजोरी: पीलिया में थकान और कमजोरी की स्थिति हो सकती है।
• पानी का अधिक सेवन: अत्यधिक पानी का सेवन करने से भी पीलिया के लक्षण हो सकते हैं।
• खांसी और सर्दी: पीलिया में खांसी और सर्दी की समस्या हो सकती है।
• खाने का दिल नहीं करता: अगर आपको खाने का मन नहीं करता है तो यह भी पीलिया का एक लक्षण हो सकता है।
• पैरों में सूजन और दर्द: पैरों में सूजन और दर्द की समस्या भी पीलिया के लक्षणों में शामिल हो सकती है।
• पेशाब में रंग का परिवर्तन: पीलिया में पेशाब का रंग भी पीला हो सकता है।
• भूख की कमी: पीलिया से आपकी भूख में कमी हो सकती है और आपका वजन भी घट सकता है।
• याददाश्त में कमी: पीलिया से आपकी याददाश्त में कमी हो सकती है और आपके मनसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है।
पीलिया (Jaundice) का आयुर्वेदिक उपचार क्या है?:
हमने ऊपर पीलिया (Jaundice) के कारण और लक्षण के बारे में जाना है। अब हम आपको पीलिया के आयुर्वेदिक उपचार के संबध में जानकारी देने का प्रयास करेंगे:
• कुटकुटीका रस (कटुका रस): कुटकुटीका रस पीलिया में फायदेमंद होता है क्योंकि यह शरीर में बिलीरुबिन के स्तर को कम कर सकता है।
• भूम्यामलकी (फालसा): भूम्यामलकी भी पीलिया के उपचार में उपयोगी हो सकती है, क्योंकि यह बिलीरुबिन के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।
• गिलोय (अमृता): गिलोय के पत्तों का उपयोग पीलिया में किया जा सकता है, क्योंकि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर सकता है।
• पुनर्नवा (बोहरिवल्ली): पुनर्नवा भी पीलिया के उपचार में फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि यह पेशाब के माध्यम से शरीर के अतिरिक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है।
• चूना का उपयोग: पीलिया के रोग में रोगी को चूने का सेवन गन्ने का रस, मौसमी का रस, संतरे का रस या फिर अंगूर के रस में मिलाकर करने पीलिया रोग ठीक होता है।
• तिलतैल (सेसम सीड ऑयल): तिलतैल को पीलिया में मालिश के रूप में उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि यह त्वचा को नरम और सुपला बनाए रखने में मदद कर सकता है।
• नीम: नीम के पत्तों का प्रयोग पीलिया में भी किया जा सकता है, नीम के पत्तों का रस निकालकर घी या शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है। नीम का सेवन शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद कर सकता है।
• दालचीनी: दालचीनी का प्रयोग भी पीलिया के उपचार के लिए किया जा सकता है, क्योंकि यह शरीर में बिलीरुबिन के स्तर को कम कर सकता है।
• कुटकी (पिचोरा): कुटकी का प्रयोग पीलिया में भी किया जा सकता है, क्योंकि यह शरीर में बिलीरुबिन के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
• आर्जुन (अर्जुन की छाल): आर्जुन की छाल का प्रयोग भी पीलिया में किया जा सकता है, क्योंकि यह लिवर की सेहत को बेहतर बनाए रखने में मदद कर सकता है।
• अमलकी (आंवला): अमलकी भी पीलिया के उपचार में उपयोगी हो सकती है, क्योंकि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर सकती है।
• बेल के पत्तों का सेवन: पीलिया के रोगी को बेल के पत्तों का रस निकालकर उसमें 4 या 5 काली का चूर्ण मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को 10 एमएल मात्रा में लेने से पीलिया के रोग में राहत मिलती है।
• हरिताकी (हरड़): हरिताकी का प्रयोग पीलिया के उपचार में उपयोगी हो सकता है, क्योंकि यह शरीर की पाचन प्रक्रिया को सुधारने में मदद कर सकता है।
• गोक्षुर (ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस): गोक्षुर का प्रयोग पीलिया में उपचार के रूप में किया जा सकता है, क्योंकि यह शरीर के अतिरिक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद कर सकता है।
• त्रिफला का सेवन: पीलिया रोग में त्रिफला चूर्ण को शहद में मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को चाटने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
• पिप्पली (पिप्पली मूल): पिप्पली का प्रयोग पीलिया के उपचार में उपयोगी हो सकता है, क्योंकि यह त्वचा की सेहत को बेहतर बनाए रखने में मदद कर सकता है।
• वसाक (आड़ुसा): वसाक का प्रयोग पीलिया के उपचार में किया जा सकता है, क्योंकि यह लिवर की सेहत को सुधारने में मदद कर सकता है।
• शतावरी: शतावरी का प्रयोग पीलिया में भी किया जा सकता है, क्योंकि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर सकता है।
ध्यान दें कि आपको इन उपायों का उपयोग करने से पहले एक आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति की प्रकृति और स्वास्थ्य स्तिति अलग हो सकती है। आयुर्वेदिक उपचार को सही तरीके से आवश्यक गाइडेंस के साथ करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पीलिया के बचाव और सावधानियां:
• स्वच्छता: स्वच्छता का पालन करें, साफ पानी पीने का स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है।
• सफाई: खाने का सामान और खाने की वस्तुएं स्वच्छ रखें, ताकि भोजन से संक्रमण का खतरा कम हो।
• हाथ धोना: नियमित रूप से हाथ धोना और साबुन का उपयोग करना संक्रमण को रोकने में मदद करता है।
• खानपान: ह्याजीनिक और स्वस्थ आहार लें, फलों और सब्जियों का सेवन बढ़ाएं और प्रोटीन और फाइबर से भरपूर आहार खाएं।
• पानी पीना: पर्याप्त पानी पीने से शरीर के अन्दरीय तत्वों का संतुलन बना रहता है।
• अयर्वेदिक औषधियाँ: आयुर्वेदिक औषधियों का सही तरीके से प्रयोग करें, लेकिन डॉक्टर की सलाह पर।
• विश्राम: पर्याप्त आराम लें, रात्रि में 7-8 घंटे की नींद लेना शरीर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
• संतुलित जीवनशैली: योग और प्राणायाम का अभ्यास करना, तनाव को कम करने में मदद कर सकता है।
• बच्चों की सेहत: बच्चों की सेहत का भी ध्यान रखें, उन्हें सचेत रखने के लिए सवारियों का सही इस्तेमाल करें।
• अल्कोहल और तंबाकू का सेवन न करें: अल्कोहल और तंबाकू का सेवन करने से पीलिया का खतरा बढ़ सकता है।
• हाथों की साफी: हाथों को हमेशा साफ रखें और अपने चेहरे को हाथों से न छूएं।
• बुखार की समय पर चिकित्सक से सलाह: बुखार आने पर तुरंत चिकित्सक की सलाह लें, जिससे संक्रमण का पता चल सके और सही इलाज हो सके।
• सेक्सुअल हेल्थ का ध्यान रखें: सेक्सुअल हेल्थ का संजीवनील अभ्यास करें, ताकि संबंध विषयक समस्याओं का समाधान हो सके।
• वायरल इन्फेक्शन से बचाव: वायरल संक्रमण से बचाव के लिए सभी हाइजीन सुरक्षा उपायों का पालन करें।
• नियमित चेकअप: नियमित चिकित्सा जांच में जाकर अपने स्वास्थ्य की निगरानी कराएं, ताकि आपकी बीमारियों का समय पर पता चल सके और इलाज हो सके।
ध्यान दें कि पीलिया के मामूल उपचार के लिए डॉक्टर की सलाह और निरीक्षण आवश्यक है। उपरोक्त सुझावों का पालन करते समय समर्थन के लिए एक व्यवस्थित और पेशेवर आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श लें।