आज हम आपको इस ब्लॉग पोस्ट में मिर्गी क्या है? इसके कारण, लक्षण और इसका आयुर्वेदिक उपचार, बचाव तथा सावधानियों के संबध में उचित जानकारी
देने का प्रयास करेंगे। तो चलिए आज हम जानते है कि
मिर्गी (Epilepsy) क्या है? मिर्गी (Epilepsy) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) से संबंधित एक शारीरिक विकार है। मिर्गी के दौरान व्यक्ति के मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिका (brain nerve cell) की कार्यविधि रुक जाती है। इसी के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को मिर्गी के दौरे आने लगते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति बेहोश हो सकता है या कुछ समय तक असामान्य व्यवहार कर सकता है। गांव में यह बीमारी को दौरे के नाम से प्रचलित है। मिर्गी या दौरे की बीमारी कोई संक्रमण (Infection) बीमारी नहीं है। मिर्गी कोई मानसिक बीमारी या फिर मानसिक कमजोरी के कारण होने वाली बीमारी नहीं है। मिर्गी के अधिकतर मामलों में पड़ने वाले दौरों से मस्तिष्क (brain) पर कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ता है, परंतु कभी-कभी मिर्गी के दौरों के कारण मस्तिष्क (brain) को नुकसान होने की संभावना हो सकती है।
मिर्गी (Epilepsy) या दौरे के कई कारण और लक्षण हो सकते है। मिर्गी की बीमारी किसी भी व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन अधिकतर मामलों में मिर्गी या दौरे की बीमारी छोटे बच्चों और अधेड़ उम्र के व्यक्तियों में देखने को मिलती है। मिर्गी (Epilepsy) या दौरे का उपचार करने के लिए आर्युवेद सहित मेडिकल साइंस में अनेक तरीके मौजूद हैं। मिर्गी के उपचार के लिए मेडिटेशन, योग अभ्यास, सर्जरी और दवा आदि चीजें शामिल हैं।
मिर्गी (Epilepsy) या दौरे आने के क्या कारण है:
मिर्गी (Epilepsy) के दौरों आने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकते हैं:
• दिमागी समस्याएँ (brain problems): मिर्गी के दौरे आने का प्रमुख कारण दिमागी विकार जैसे कि ट्यूमर, मस्तिष्क रक्त स्राव, इन्फेक्शन आदि मिर्गी के प्रारंभिक कारण हो सकते हैं।
• उच्च रक्तचाप (high blood pressure): यदि हमारा रक्तचाप (blood pressure) नियंत्रित नहीं हो, तो यह दौरों का कारण बन सकता है।
• आनुवंशिकता (heredity): यदि हमारे परिवार में आनुवंशिकता (heredity) के आधार पर मिर्गी के दौरे आने की समस्या रही है तो इस परिस्थिति में परिवार के अन्य व्यक्ति को भी मिर्गी का खतरा बढ़ सकता है।
• ब्रेन इंजरी (brain injury): हमारे मस्तिष्क में किसी प्रकार की कोई चोट आदि लगने के कारण दिमाग में कमी आने पर भी मिर्गी के दौरे पड़ने के ज्यादा संभावना होती है।
• हार्मोनल असंतुलन (hormonal imbalance): मिर्गी के दौरे आने के लिए किशोरावस्था, गर्भावस्था या मेनोपॉज जैसे हार्मोनल परिवर्तन भी कभी कभी मिर्गी का कारण बन सकते हैं।
• बौद्धिक शारीरिक कमजोरी (intellectual physical weakness): शारीरिक कमजोरी, कम पौष्टिकता या दुर्बल बुद्धि भी मिर्गी के आवरण को बढ़ा सकती है।
• अस्वस्थ जीवनशैली (unhealthy lifestyle): हमारी अस्वस्थ जीवनशैली (unhealthy lifestyle) तंत्रिका तंत्र की कमजोरी, नींद की कमी, तनाव, अनियमित आहार, शराब और ड्रग्स का सेवन मिर्गी के दौरों को बढ़ावा दे सकता है।
• दवाएँ और द्रव्य सेवन (drugs and substance abuse): कुछ दवाएं और द्रव्यों का अधिक सेवन करने से भी मिर्गी के दौरे हो सकते हैं।
• रखत-चर्म रोग(skin disease): रखत-चर्म रोग, मधुमेह, एचआईवी आदि भी मिर्गी के कारण बन सकते हैं।
• दिमागी असंतुलन (brain imbalance): दिमागी स्थितियों में बुद्धि के असंतुलन के कारण भी मिर्गी हो सकती है।
• विकासात्मक विकार (developmental disorder): बच्चों के विकास के दौरान होने वाले विकासात्मक विकार भी मिर्गी के कारण बन सकते हैं।
• तंत्रिका तंत्र का प्रबंधन (management of the nervous system): यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन के तंत्रिका स्थितियों का सही तरीके से प्रबंधन नहीं करता, तो भी मिर्गी का खतरा बढ़ सकता है।
• मानसिक तनाव (mental stress): मानसिक तनाव, चिंता और डिप्रेशन भी मिर्गी के दौरे का कारण बन सकते हैं।
• अनियमित खानपान (erratic eating): अनियमित खानपान और भूखे पेट लंबे समय तक बैठने से भी मिर्गी के प्रारंभिक कारण हो सकते हैं।
• वायरल इन्फेक्शन (viral infection): कई वायरल इन्फेक्शन जैसे कि एचआईवी, हेपेटाइटिस, डेंगू आदि भी मिर्गी के पीछे हो सकते हैं।
• ब्रेन ट्यूमर या सिस्ट होना (having a brain tumor or cyst): हमारे मस्तिस्क में ब्रेन ट्यूमर या सिस्ट होने के कारण भी मिर्गी के दौरे आ सकते है।
• एड्स (aids): एड्स (aids) की बीमारी के कारण भी मिर्गी के दौरों को बीमारी हो सकती है।
• तानिकाशोथ (meningitis): मेनिनजाइटिस बीमारी के कारण भी मिर्गी के दौरों आने की पूर्ण संभावना है।
• संवहनी रोग (vascular disease): संवहनी रोग (vascular disease) के कारण भी मिर्गी के दौरे आ सकते है।
• जन्म से पहले शिशु के सिर में चोट लगना (Prenatal head injury): कभी कभी गर्भवती महिला को जन्म से पहले शिशु के सिर में चोट (Prenatal head injury) लगने के कारण भी मिर्गी के दौरे आ सकते है।
• मनोभ्रंश या अल्जाइमर रोग (dementia or alzheimer’s disease): इस बीमारी के कारण भी मिर्गी की समस्या पैदा हो सकती हैं।
• अधिक शराब या नशीली दवाओं का सेवन ( alcohol or drug use): अधिक शराब या नशीली दवाओं का सेवन मिर्गी का कारण हो सकता है।
• ब्रेन स्ट्रोक (brain stroke): ब्रेन स्ट्रोक के कारण 35 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में मिर्गी का दौरा पड़ने की अधिक संभावना होती है।
• शिशु के जन्म के दौरान मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी होना (oxygen to the brain during): बच्चे जन्म के दौरान बच्चे के मस्तिस्क के ऑक्सीजन लेबल कम हो जाने के कारण भी मिर्गी की समस्या पैदा हो सकती है।
यह केवल कुछ कारण हैं जो मिर्गी (एपिलेप्सी) के दौरों के पीछे हो सकते हैं। आपको यदि मिर्गी के लक्षण हों तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए, ताकि सही निदान और उपचार की जा सके।
मिर्गी (Epilepsy) के लक्षण क्या है?:
ऊपर हमने आपको मिर्गी के कारणों के संबध में जानकारी देने का प्रयास किया है, अब हम आपको मिर्गी (Epilepsy) के लक्षणों के बारे में जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
मिर्गी (एपिलेप्सी) एक जटिल न्यूरोलॉजिकल रोग है जिसमें व्यक्ति के दिमाग की विशेष कोशिकाओं में अचानक विकार होता है, जिससे उन्हें अकस्मात दौरे आ सकते है:
• अचानक से दौरा पड़ना: व्यक्ति को अचानक से दौरे शुरू होते है और एक आम व्यक्ति इस स्थिति को समझ नही पाता है।
• आवाज बदलना: मिर्गी के दौरे के समय व्यक्ति की आवाज अचानक बदल सकती है और वे अजीब आवाज में भी बोल सकता हैं।
• कार्यशैली में अचानक से बदलाब: मिर्गी के दौरे के समय व्यक्ति की कार्यशैली में अचानक से बदलाब हो सकता है, जैसे कि व्यक्ति अचानक से बिना आवाज के चलने लगें।
• अचानक से डिजीज़न लेना: मिर्गी के समय व्यक्ति की डिसीजन लेने की छमता कम हो जाती है। इस दौरान व्यक्ति अचानक से डिसीजन ले लेता है।
• अचानक से भावनाओं में बदलाब होना: मिर्गी के दौरान व्यक्ति की भावनाओ में अचानक से बदलाब हो जाता है। इस दौरान व्यक्ति की आंखों में आंसू या हँसी आदि आ सकती है।
• शरीर के अंग की झिलमिलाहट: मिर्गी के समय व्यक्ति के शरीर के अंगो जैसे कि होंठ, हाथ या पैर आदि में झिलमिलाहट होने लगती है।
• गर्दन तनाव: मिर्गी के दौरे के समय व्यक्ति की गर्दन तन सकती है और उनका मुँह चिढ़ सकता है।
• याददाश्त में कमी: मिर्गी के दौरे के बाद व्यक्ति की याददाश्त में कमी आ सकती है।
• थकान: दौरे के बाद व्यक्ति को बहुत अधिक थकान महसूस हो सकती है।
• सिरदर्द: मिर्गी के दौरे के बाद व्यक्ति को सिरदर्द महसूस हो सकता है।
• उलझन या भ्रम होना: मिर्गी के दौरे के समय व्यक्ति को उलझन या भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है।
• उल्टी होना: मिर्गी के दौरे के समय कुछ व्यक्तियों को उल्टियाँ आ सकती है।
• शब्दों का टूटना: मिर्गी के दौरे के समय व्यक्ति की भाषाशैली मे बदलाव होना या शब्दों वाक्य का अचानक से टूट सकते हैं
• खुद को छोड़ देना: मिर्गी के दौरे के समय कुछ व्यक्तियों के अंदर खुद को छोड़ देने की भावना पैदा हो सकती है और उन्हें अपनी पहचान नहीं होती है।
• मुंह से झाग आना: मिर्गी के दौरे के समय व्यक्ति के मुंह से झाग आने लगते है।
• अचानक से गुस्सा आना: मिर्गी के दौरान व्यक्ति को अचानक से गुस्सा आ जाता है।
• चक्कर आ जाना: मिर्गी के दौरान व्यक्ति को अचानक से चक्कर आने लगते है।
• एक ही स्थान पर घूमना: मिर्गी की बीमारी में रोगी एक ही स्थान पर घूमने लगता है।
• कुछ समय के लिए सब कुछ भूल जाना: मिर्गी के दौरान व्यक्ति को कुछ भी याद नही रहता है, व्यक्ति कुछ समय के लिए सब कुछ भूल जाता है।
• अचानक से खड़े-खड़े जमीन पर गिर जाना: मिर्गी के दौरान व्यक्ति अचानक से खड़े-खड़े जमीन पर गिर जाता है।
यह थे कुछ मिर्गी के लक्षण जिन्हें आपको जानना आवश्यक है। अगर आपको ऐसे लक्षण महसूस होते हैं, तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए ताकि सही निदान और उपचार की जा सके।
मिर्गी (Epilepsy) के आयुर्वेदिक उपचार क्या है?:
ऊपर हमने आपको मिर्गी के लक्षणों के संबध में जानकारी देने का प्रयास किया है, अब हम आपको मिर्गी (Epilepsy) का आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जानकारी देने का प्रयास करेंगे। तो चलिए जानते है कि मिर्गी आयुर्वेदिक उपचार क्या है।
मिर्गी के दौरों को आयुर्वेद में “अपस्मार” कहा जाता है और इसका उपचार आयुर्वेद में पुरातन और प्रमाणित तरीकों से किया जाता रहा है। कुछ आयुर्वेदिक उपचार निम्नवत है:
• नस्य विधि उपचार: इस उपचार में नासिका (नाक) में आयुर्वेदिक तेलों का सेवन करते है। यह विधि शरीर की शिथिल नसों को खोलती है और अनेकों रोगों से मुक्त करने में मदद करती है।
• विरेचन: विरेचन विधि में शरीर को पूरा से साफ करने के लिए शुद्ध घृत या औषधियाँ प्रयुक्त की जाती है।
• शिरोविरेचन: इसमें मिर्गी के दौरे के लिए सिर पर औषधियों का लेप किया जाता है। जिससे मस्तिष्क की नसों को शांति और शुद्धि मिलती है।
• आयुर्वेदिक बातम्यचिकित्सा: आयुर्वेदिक बातम्यचिकित्सा में व्यक्ति की प्रकृति, दोष और रोग की स्थिति के आधार पर उपचार तय किया जाता है।
• पंचकर्म चिकित्सा: यह पांच प्रमुख विधियों (वमन, विरेचन, वस्ति, नस्य, रक्तमोक्षण) का संयोजन होता है जिनसे शरीर की शुद्धि होती है। यह विधि मिर्गी के रोग में काफ़ी मददगार साबित होती है।
• तुलसी के पत्तों का सेवन: मिर्गी के रोगी को तुलसी के 4-5 पत्ते कुचलकर उसमें कपूर मिलाकर रोगी को सुंघाने से लाभ मिलता है।
• शिरोधारा: इसमें तेल या औषधियों का धारण किया जाता है, जिससे मस्तिष्क की स्थिति सुधारती है।
• अश्वगंधा: यह जड़ी-बूटी मिर्गी के दौरों को कम करने में मदद करती है और स्नायुजनन प्रणाली को स्थायित करने में सहायक होती है।
• मेंहदी के पत्तों का रस: मिर्गी के रोगी को मेंहदी के पत्तों का रस निकालकर दूध में मिलाकर पिलाने से मिर्गी की बीमारी में लाभ मिलता है।
• ब्रह्मी: इसका सेवन मस्तिष्क की शक्ति को बढ़ाता है और दिमाग को शांति प्रदान करता है।
• प्याज के रस का सेवन: मिर्गी के रोगी को प्याज के रस को पानी में मिलाकर पिलाने से मिर्गी रोग में लाभ मिलता है।
• शंखपुश्पी: यह तंत्रिका संवेदना को सुधारता है और दिल की कामना को बढ़ावा देता है।
• जटामंसी: यह मस्तिष्क की स्थिति को सुधारता है और दौरे की संख्या को कम करता है।
• शरीफा के पत्तों के रस का प्रयोग: मिर्गी के दौरान रोगी की नाक में शरीफा के पत्तों के रस की 3-4 बूंदे डालने से रोगी जल्दी से होश में आता है।
• गोखरू: इसका सेवन स्नायुजनन प्रणाली को मजबूती प्रदान करता है और दौरे को कम करने में मदद करता है।
• शतावरी: यह हमारी तंत्रिका संवेदना को सुधारती है और व्यक्ति को शांति प्रदान करती है।
• ब्राह्मी: यह तंत्रिका संवेदना को शांत करती है।
• अश्वगंधा चूर्ण: यह व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति को सुधारता है और दौरों की संख्या को कम करता है।
• दाईं तरफ से करवट लेना: मिर्गी के दौरान रोगी को दांयी करवट से लिटायें ताकि उसके मुँह से सभी झाग आसानी से बाहर निकल जाये। दौरा पड़ने के समय रोगी को कुछ भी न खिलायें बल्कि दौरे के समय अमोनिया या चूने की गंध सुंघानी चाहिये इससे उसकी बेहोशी दूर हो सकती है ।
• नीम, अजवायन और काला नमक का सेवन: नीम की कोमल पत्ती, अजवायन और काला नमक को पानी में मिलाकर पेस्ट बना लें, उसके बाद इस पेस्ट का सेवन करने से मिर्गी की बीमारी लाभ मिलता है।
• नींबू का रस और हींग का सेवन: मिर्गी के रोगी को नींबू के रस में हींग मिलाकर चटाने से मिर्गी में लाभ मिलता है।
यदि आप मिर्गी के दौरों से पीड़ित हैं, तो आपको उपचार के लिए एक प्रशिक्षित आयुर्वेदिक डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। आयुर्वेद में उपचार की प्रक्रिया का व्यक्तिगतीकरण करने के लिए आपकी प्रकृति, दोषों की स्थिति और बीमारी की गहराई का मूल्यांकन किया जाता है।
मिर्गी (Epilepsy) से बचाव और सावधानियां क्या है?:
ऊपर हमने आपको मिर्गी का आयुर्वेदिक उपचार के संबध में जानकारी देने का प्रयास किया है, अब हम आपको मिर्गी (Epilepsy) से बचाव और सावधानियों के बारे में जानकारी देने का प्रयास करेंगे। तो चलिए जानते है कि मिर्गी बचाव और सावधानियां क्या है:
• नियमित दवाइयों का सेवन: आपके डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयों को आप नियमित रूप से लेते रहें। यह दवाएं आपके मिर्गी के दौरों को कम करने में मदद कर सकती है।
• भरपूर निद्रा: मिर्गी के दौरे को ठीक करने के अच्छी निद्रा की आवश्यकता होती है, क्योंकि थकान और तनाव मिर्गी के दौरों को बढ़ा सकते हैं।
• स्वास्थ्यपूरक आहार: आहार में पौष्टिकता से भरपूर फल, सब्जियाँ, अनाज, प्रोटीन शामिल करें।
• नियमित व्यायाम: मिर्गी के दौरे में तनाव बहुत ही खतरनाक साबित होता है, इसलिए नियमित योग और प्राणायाम की रोजाना प्रैक्टिस करने से तनाव को कम किया जा सकता है।
• तंत्रिका संवेदना की सुरक्षा: मिर्गी की बीमारी में यह सुनिश्चित करें, कि आपकी तंत्रिका संवेदना सुरक्षित रहे, हमको उन जगहों पर न जाएं जहाँ आपको खतरा महसूस हो।
• योग और मेडिटेशन: मिर्गी की बीमारी के लिए योग और मेडिटेशन बहुत जरूरी प्रक्रिया है। योग और ध्यान से तनाव कम होता है। इससे हमारे मस्तिष्क को शांति मिलती है।
• कठिन शारीरिक मेहनत से बचें: मिर्गी के मरीज को कठिन शारीरिक मेहनत से बचना चाहिए। इसके लिए जबरजस्ती नही करनी चाहिए।
• शांतिपूर्ण और स्वास्थ्यपूर्ण जीवनशैली: मिर्गी के मरीज को स्वस्थ खानपान, व्यायाम और प्राकृतिक जीवनशैली और शांति का पालन करें।
• सकारात्मक पुस्तकों का अध्ययन और काम में स्थिरता: मिर्गी के मरीज को सकारात्मक पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। कुछ समय के लिए अपने दैनिक कार्यों रोककर आराम और शांति अनुभव करनी चाहिए।
• जागरूकता: यदि आपके परिवार में किसी व्यक्ति को मिर्गी के दौरों आते है तो उनको इसके लिए जागरूक करें और उसके अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा करें।
• ड्राइविंग के दौरान सावधानी: यदि आप मिर्गी के मरीज है तो आपको वाहन आदि नही चलाना चाहिए। यदि वाहन चलाना बहुत जरूरी है तो अपने साथ किसी व्यक्ति को लेकर चलना चाहिए।
• डॉक्टर की सलाह: यदि आप मिर्गी के मरीज है तो आपको अपने डॉक्टर से नियमित रूप से मिलते रहें और उनकी सलाह का पालन करें।
• सकारात्मक सोच विकसित करें: मिर्गी के मरीज को अपने अंदर सकारात्मक सोच पैदा करनी चाहिए। हमको उस परमपिता परमात्मा पर विश्वास रखते हुए यह सोचना चाहिए कि हमारी बीमारी ठीक हो रही है। इसके आप डॉक्टर जोसेफ मर्फी की लिखित पुस्तक “अवचेतन मन की शक्ति” हिंदी या इंग्लिश वर्जन को पढ़ सकते है। यह पुस्तक हमारे अंदर सकारात्मक सोच विकसित करने में बहुत ही मददगार साबित होगी।
यह बचाव और सावधानियां आपको मिर्गी के दौरों से बचाने में मदद कर सकती हैं, लेकिन आपको हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श लेने की आवश्यकता होती है।