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अल्सर (ulcers) क्या है? इसके कारण,लक्षण और इसका आयुर्वेदिक उपचार, बचाव तथा सावधानियां:

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अल्सर (ulcers) एक प्रकार से पेट (stomach) या छोटी आंत (small intestine) में मौजूद ऊपरी परत में होने वाले घाव (Wound) को अल्सर कहते है। अल्सर के पैदा होने के पीछे बहुत से कारण और स्थिति होती हैं। यह स्थिति जब पैदा होती है। जब हमारे म्यूकस की ऊपरी परत खराब या छतिग्रस्त हो जाने के कारण शरीर को रक्षा प्रदान करने वाला म्यूकस अपना कार्य प्रभावी ढंग से नहीं कर पाता है। इस दौरान हमारे शरीर में अम्लता का स्तर भी बढ़ जाता है, अम्लता बढ़ने आ हमारे पेट के ऊतकों को नुकसान पहुंचता है। इसके पीछे की असली वजह हमारा शराब खानपान और दिनचर्या होती है। एक रिपोर्ट के अनुमान पश्चिमी देशों में दस प्रतिशत लोगों को इनके जीवनकाल में कभी न कभी पेट या छोटी आंत में अल्सर  जैसी बिमारिय हुई है। यदि हम अपने खानपान और जीवन शैली मे सुधार कर लें तो अल्सर से सहित कब्ज, बाबासीर जैसी अन्य बीमारियों के शिकार होने से बच सकते है।  

अल्सर (ulcers) एक प्रकार के घाव होते हैं जो पेट, के अंदर मौजूद आहारनाल या आँतों की अंदरूनी सतह पर विकसित होते हैं। जिस जगह पर अल्सर होता है, उसको अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। जैसे पेट में होने वाले अल्सर को ‘गैस्ट्रिक अल्सर’ ‘(Gastric ulcer)’ कहा जाता है, इस प्रकार आंत के अगले हिस्से में होने वाले अल्सर को ‘डुओडिनल अल्सर’ ‘(Duodenal Ulcer)’ कहा जाता है।

मुख्यत: अल्सर पेट एवं आँतों की अंदरूनी सतह पर अम्ल (acid) के दुष्प्रभावों के कारण होता हैं। जब यह अम्ल इस सतह के संपर्क में आता है तब वहाँ पर जख्म बनने लगते हैं। यह अल्सर हेलिकोबेक्टर पाइलोरी नामक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण भी हो सकता है। इस बैक्टीरिया के संक्रमण के लक्षण प्रारंभिक दिनों में बहुत हल्के होते हैं, इसलिए इसकी पहचान शुरुआती दिनों में नही हो पाती है। इसकी पहचान तब होती है जब तक कि ये अल्सर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। कई बार लम्बे समय तक एंटीबायोटिक्स दवाओं के सेवन से, दर्द निवारक दवाओं के उपयोग से, भूम्रपान और शराब के सेवन से भी अल्सर हो सकता है। आज-कल  मानसिक तनाव के चलते भी कई लोगों को अल्सर के लक्षण देखे गए है। 

अल्सर (Ulcer) होने के क्या कारण है:

हमने ऊपर जाना कि अल्सर (ulcers) क्या है? अब हम जानेंगे कि अल्सर (Ulcer) होने के क्या कारण है हो सकते है। तो चलिए जानते है कि अल्सर के क्या कारण है:

अल्सर एक प्रकार की पेट की बीमारी होती है जिसमें पेट या आंत्र की दीवार में छोटे-छोटे घाव बन जाते हैं। यह घाव ज्यादातर खाने पीने की वजह से बढ़ जाते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ महत्वपूर्ण कारण जिनके कारण अल्सर हो सकता है:

• हेलीकोबैक्टर पाइलोरी इन्फेक्शन (Helicobacter pylori infection): यह इंफेक्शन पेट में घाव की प्रारंभिक प्रक्रिया को बढ़ाने का कार्य करता है। इससे अल्सर रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। 

• अशुद्ध खानपान (junk food): जब हमारे द्वारा अधिक मात्रा में मसालेदार, तली हुई, और अस्वस्थ खानपान जंक फूड का सेवन किया जाता है तो इस कारण से भी अल्सर की संभावना बढ़ जाती है।

• धूम्रपान और शराब का सेवन (smoking and drinking):  धूम्रपान और शराब का सेवन करने से भी अल्सर नामक रोग हो सकता है। 

• स्ट्रेस (stress): मानसिक तनाव, चिंता और तनाव अल्सर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

• एसिडिटी (acidity): यदि लगातार पेट में अत्यधिक एसिडिटी होने के कारण भी अल्सर की बीमारी हो सकती है।

• आहार में घातक तत्वों का सेवन (Many harmful substances in the diet):  यदि हम अपने आहार या खानपान में तीखा, मिर्च-मसाले, अधिक मसालेदार चीजों का सेवन करते है तो हमको अल्सर जैसी बीमारी हो सकती है।

• अव्यवस्थित खानपान (disordered eating): नियमित समय पर खाना न खाना से भी अल्सर होने की संभावना है।

• बढ़ी हुई मोटाई (fat gain): बढ़ी हुई मोटाई और असंतुलित वजन अल्सर के लिए एक रिस्क फैक्टर हो सकते हैं।

• इंसुलिन रिजिस्टेंस (insulin resistance): डायबिटीज़ और इंसुलिन रिजिस्टेंस के रोगियों में भी अल्सर होने की संभावना बढ़ जाती है।

• आवास्थाएँ जो एल्कोहलिक अवस्था में होती हैं (states that occur in the alcoholic state): जैसे कि स्ट्रोक, दिल की बीमारियाँ, लिवर की समस्याएँ, आदि से भी अल्सर होने की संभावना बढ़ जाती है।

• गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी (gastrointestinal surgery):  पेट के किसी भी हिस्से पर होने वाली सर्जरी से भी अल्सर हो सकता है।

• खून की कमी (Anaemia): खून की कमी से भी अल्सर नामक बीमारी हो सकती है।

• अनियमित लाइफस्टाइल (irregular lifestyle): अनियमित खानपान, समय पर सोने-उठने की आदत न होना और दिनभर के काम-काज में तनाव भी अल्सर का कारण बन सकता हैं।

• विशिष्ट दवाएं (specific drugs): कुछ दवाओं का अधिक सेवन करने से भी अल्सर हो सकता है, जैसे कि एस्पिरिन और इबुप्रोफेन।

• जीनेटिक प्रवृत्ति (genetic predisposition): कुछ लोगों को जीनेटिक प्रवृत्ति के कारण भी अल्सर हो सकता है।

अल्सर (Ulcer) के क्या लक्षण है:

हमने ऊपर जाना कि अल्सर (Ulcer) होने के क्या कारण है: अब हम जानेंगे कि अल्सर (Ulcer) के क्या लक्षण हो सकते है। तो चलिए जानते है कि अल्सर (Ulcer) के क्या लक्षण है:

अल्सर एक प्रकार की पेट की बीमारी होती है जिसमें पेट की आंत्रिक दीवार में घाव बन जाते हैं। यह घाव आमतौर पर खाने-पीने और जीवनशैली के दुष्प्रभाव के कारण होते हैं।  इनके निम्नलिखित लक्षण हैं: 

• पेट में दर्द और तकलीफ (abdominal pain and discomfort): पेट में दर्द और तकलीफ अल्सर के प्रमुख लक्षण में से एक है। यह दर्द पेट के ऊपरी हिस्से में ज्यादातर होता है और खाना खाने के बाद या रात के समय बढ़ जाता है।

• पेट में जलन और आवाज़ का बदलना (Heartburn and change in voice): अल्सर के कारण पेट में जलन या आवाज़ में बदलाब हो सकता है, जिसके साथ ही घाव क्षति उत्पन्न हो सकती है।

• उलटी करना और अपच (vomiting and indigestion): अल्सर के मामूल लक्षण में उलटी करने की संभावना बढ़ जाती है, जिसके साथ ही पाचन शक्ति कम हो सकती है।

• वजन कमी (weight loss): अल्सर के कारण खाने पीने की प्रक्रिया में असमर्थता हो सकती है, जिससे वजन में कमी हो सकती है।

• खूनी की उल्टी होना (vomiting blood): अल्सर के ज्यादातर मामलों में खून की उल्टी हो सकती है। 

• आंत का दर्द (visceral pain): अल्सर होने से आंत में दर्द आदि की तकलीफ हो सकती है।

• आंत्र में जलन (irritable bowel): अल्सर के कारण आंत्र में जलन या दुखने की संभावना बढ़ जाती है।

• पेट में भारीपन और गैस (abdominal heaviness and gas): पेट में भारीपन और गैस की समस्या भी अल्सर के कारण हो सकती है।

• खाने की ईच्छा में कमी होना (loss of appetite): अल्सर के कारण खाने में रुचि कम हो सकती है और आंत्र में तकलीफ हो सकती है।

• खाने के बाद उबकाई (nausea after eating): अल्सर के कारण पेट में घाव हो जाते है इसके कारण  खाने के बाद उबकाई हो सकती है।

• पेट में गर्मी (stomach heat): अल्सर के कारण पेट में गर्मी या जलन की समस्या हो सकती है।

• मल का रंग पीला होना (yellow stool color): अल्सर के कारण मल का रंग पीला हो सकता है, जो किसी भी गंभीर स्थिति का संकेत हो सकता है।

• पेट की सूजन का बढ़ना (abdominal bloating): अल्सर के कारण पेट में सूजन हो सकती है। इस लिए इसको नजरंदाज न करें।

• पेट में तनाव होना (stomach strain): अल्सर के कारण पेट में तनाव  की स्थिति पैदा हो सकती है। जिसके कारण तकलीफ बढ़ सकती है।

• आंत्र का जलना या सूजना (burning or inflammation of the bowel,): अल्सर के कारण आंत्र में जलन या सूजन की समस्या हो सकती है, जिससे तकलीफ हो सकती है।

यदि आपको अपने लक्षणों में से कुछ का संकेत होता है, तो आपको तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए ताकि सही दिग्गजग्गी और उपचार की जा सके।

अल्सर (ulcer)की बीमारी का आयुर्वेदिक उपचार:

हमने अबतक अल्सर के कारण और लक्षणों के संबध मे जानकारी की है। अब हम जानेंगे कि अल्सर (Ulcer) के आयुर्वेदिक उपचार क्या है: 

अल्सर की बीमारी को आयुर्वेद में “पित्ताशय दोष” के तहत वर्णित किया जाता है और इसके उपचार के लिए आयुर्वेद में कई प्राकृतिक औषधियाँ और उपाय बताए का रहे है आई के आयुर्वेदिक उपचार निम्नवत है:

• आंत्रप्रशामक चिकित्सा (palliative care): आयुर्वेदिक विधियों से आंत्र की प्रशामन चिकित्सा की जाती है, जिसमें विशेष आहार, पानी पीने के तरीके, और विश्राम के सूझाव दिए जाते हैं।

• यवागुल्या चर्ण (Yavagulya Churna): यह चूर्ण अल्सर के उपचार में प्रयुक्त होता है, जो पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करता है।

• कुटजारिष्ट (Kutjarisht): यह आयुर्वेदिक औषधि पित्त के विकार को नियंत्रित करने के लिए और ज्वर, पेट दर्द और आंत्र की सूजन के उपचार में उपयुक्त होता है।

• शतावरी (Asparagus):  यह पेट को सुखदायक और सीतल प्रभाव प्रदान करती है और अल्सर के लक्षणों को कम करने में मदद करती है।

• नीम (neem): नीम के पत्तों का सेवन पेट में जलन और इन्फेक्शन को कम करने में मदद कर सकता है।

• अविपत्तिकर चूर्ण: इस चूर्ण का सेवन पेट की सूजन और जलन को कम करने में मदद करता है।

• पतोलारिष्ट (patolarishta): यह चूर्ण पेट में जलन और सूजन को कम करने में सहायक होता है।

• गुडूचि घृत (Guduchi Ghrita):  यह घृत पेट की सूजन को कम करने और पाचन को सुधारने में मदद करता है।

• धान्यकाशाय (granary): यह आयुर्वेदिक औषधि आंत्र में जलन और दर्द को कम करने में सहायक होती है।

• सोंठ और जीरा का सेवन (Consumption of dry ginger and cumin): एसिडिटी के बचाव के लिए रोगी को सोंठ, जीरा और काला नमक का घोल बना लें उसके बाद इस पानी को उबाल लें, उबले हुए पानी के सेवन से एसिडिटी में फायदा होता है।

• ब्रह्मी (Brahmi): यह हरण करने की क्षमता देती है और पेट की सूजन को कम करने में मदद कर सकती है।

• खदिरारिष्ट (Khadirarishta): यह चूर्ण पेट में जलन और दर्द को कम करने में सहायक हो सकता है।

• जीरा और काला नमक का सेवन (Consumption of cumin and black salt): अल्सर के रोगी को अपने सेवन में प्रतिदिन जीरा और काले नमक का सेवन करना चाहिए, इस पानी को उबाल लें और इसमें थोड़ी सी मात्रा में हल्दी भी मिला लें, इसके सेवन से बहुत लाभ मिलेगा।

• कालमेघासव (Kalmeghasav): यह औषधि पेट में जलन को कम करने में मदद कर सकती है और पाचन को सुधारने में सहायक हो सकती है।

अल्सर की बीमारी के उपचार के लिए आपको एक प्रशिक्षित आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति की प्राकृति और स्थिति अलग होती है। उनकी सलाह के बाद ही किसी भी उपाय का अनुसरण करें।

अल्सर (Ulcer) से बचाव और सावधानियां क्या है?:

हमने ऊपर जाना कि अल्सर (Ulcer) का आयुर्वेदिक उपचार क्या है? अब हम जानेंगे कि अल्सर (Ulcer) से अपना बचाव और सावधानियां किस तरह से कर सकते है। तो चलिए जानते है कि अल्सर (Ulcer) के बचाव और सावधानियां क्या है?:

• स्वस्थ आहार (Healthy Diet): हमको अपने खाने में प्रोटीन-रिच आहार, फल, सब्जियाँ और पूरे अनाज सम्मिलित करें। तले हुए, मसालेदार, और तीखे खाने से बचाव करना चाहिए।

• पानी की पर्याप्त मात्रा: प्रतिदिन कम से कम 8-10 गिलास पानी पिएं, ताकि पाचन प्रक्रिया में मदद मिले।

• तंबाकू और शराब का सेवन रोकें (no smoking and drinking): तंबाकू और शराब का सेवन करने से बचें, क्योंकि ये अल्सर को बढ़ावा देते हैं।

• स्ट्रेस प्रबंधन (no tention): स्ट्रेस को सही तरीके से प्रबंधित करने के लिए योग और ध्यान का प्रयास करें।

• अधिक फाइबर सेवन (fiber intake): हमको अपने भोजन में फाइबर-युक्त आहार खाएं, जैसे कि खाद्य अनाज, फल, सब्जियाँ, और दालें।

• अल्कोहल से परहेज़ (no alcohol): अधिक अल्कोहल के सेवन से बचें, क्योंकि यह पेट की दीवार को क्षति पहुँचा सकता है।

• अधिक मात्रा में दवाएं नहीं खाएं (don’t overdose): बिना डॉक्टर की सलाह के बड़ी मात्रा में दवाएं नहीं खाएं, क्योंकि ये अल्सर को बढ़ावा दे सकती हैं।

• नियमित खानपान का समय निश्चित करें(schedule regular meals): नियमित खानपान के समय पर भोजन करें, ताकि पाचन प्रक्रिया ठीक से हो सके।

• विश्राम और नींद(rest and sleep): पर्याप्त आराम और नींद का पालन करें, क्योंकि ये पेट के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।

• स्वस्थ वजन बनाए रखें (maintain a healthy weight): आपके वजन को संतुलित रखने के लिए नियमित व्यायाम करें।

• हाइड्रोक्लोरिक एसिड से बचाव(Avoid Hydrochloric Acid): अधिक हाइड्रोक्लोरिक एसिड से बचने के लिए छोटे-छोटे खाने की बाइट खाएं।

• गरम खाने से बचें(avoid hot food): बहुत गरम खाने से बचें, क्योंकि यह अल्सर को बढ़ावा देता है।

• डॉक्टर की सलाह लें (consult a doctor): यदि आपको पेट में जलन, तकलीफ या अन्य लक्षण हों, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

एसपी सिंह चंद्रमा

एसपी सिंह चंद्रमा

अधिकतर मेरे लेख अपने आरोग्य को सुधारने, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के अद्भुत फायदों पर आधारित होते हैं। मेरा उद्देश्य सामान्य लोगों को स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है और उन्हें शक्तिशाली आयुर्वेदिक उपचार और उपायों से अवगत कराना है। मेरे लेखों में आपको विशेषज्ञ सलाह और नैतिकता के साथ विश्वसनीय जानकारी मिलेगी जो आपके रोगों को दूर करने में मदद करेगी और आपको स्वस्थ और प्रकृति से समृद्ध जीवन जीने में सहायता करेगी। धन्यवाद।

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